Friday, 29 May 2020

Dattashraya...The Way of Akhand Gyan Yoga !

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अखंड-ज्ञान-योग-मार्ग 
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* नीजमांगल्यातीतप्राण *

हरिरसचित्त हरिर्थ श्रीशरण |
हरिरूपचित्त हरिर्थ श्रीशयण |
हरिभूपकमल नवनवोन्मेषप्रयाण |
हरिकृपदृष्टीज नीजमांगल्यातीतप्राण || १ ||

हरिनृपश्रेष्ठोऽ श्रेष्ठात्म्य सुसुंदर |
हरिजपश्रेष्ठोऽ जीवात्म्यंतर |
हरिर्तपुश्रेष्ठोऽ शीवात्म्यंतराग्नेयांतर |
हरिकृपदृष्टीज नीजमांगल्यातीतप्राण || २ ||

सर्वेकप्रयाण जीवेशास्त्रु प्राणनिष्ठः |
हरिपूर्णस्वभाव सर्वातिमऽ प्रविष्ठः |
चारूऽ म्हणेंः जीवेतोअंतीम |
पावतसेंः श्रीधर नीजमांगल्यातीतप्राण || ३ |||

गूढार्थ : अखंड-ज्ञान-योग त्रिसुत्रींचा मूळाधार
श्रीदत्ताश्रय व तयाची स्तुतीपूर्ण कवणे अर्थात्
गोवी नामक काव्यरचनाप्रकार. ज्यातून,
अंतीम तथा अंतरिम सत्यवर्म ज्ञानाराध्य
काव्य विष्णु सदन ज्ञानमंदिरातून व्यक्तबद्ध होते.

महाकवी विष्णुभक्त चारूदत्त

DATTASHRAYA..
THE WAY OF AKHAND GYAN YOGA


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